Friday, 31 January 2020

सदानी (सादरी/नागपुरी) लोकनृत्य

सदानी लोकनृत्य :-

1. भूमिका
2. सदान समाज के प्रमुख नृत्य
3. डमकच (डमकईच) नृत्य
4. जनानी झूमर (झूमईर)
5. मर्दानी झूमर (झूमईर)
6. अंगनाई नृत्य
7. कली नृत्य इत्यादि हैं।

झारखंडी समाज की संरचना आदिवासी और सदान की संभागिता से हुई है। दोनों की प्रकृति और संस्कृति एक है भाषा भले भिन्न हो। यहां का नाचना, गाना और बजाना आदिम प्रकृति की हैं। सदियों से इनके ये खूबसूरत नृत्य, गीत की परंपरा यथावत चली आ रही है। आधुनिक सभ्यता, शिक्षा, विदेशी प्रभाव व वाह्याडम्बर की विकृतियों के जल प्रलय में ये झारखंड के भूमिपुत्र सदान और आदिवासी दोनो समाज अपने अनुरूप नृत्य-गीत की परंपरा को सुरक्षित व अक्षुण्ण बनाए हुए हैं।

लेकिन अब सदान का अस्तित्व वजूद पहचान अस्मिता लगभग मृत समान है, धुमिल होता चला जा रहा है। भविष्य में सदानों को केवल इतिहास के पन्नों में ही सिमट के रहना पड़ जायेगा या फिर सदानों को इतिहास से भी हटा दिया जाएगा। ये कहना बड़ा मुश्किल हो चुका है।

आदिवासी और सदान दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों ही कृषि जीवी हैं, प्रकृति के अनुगामी हैं, झारखंड की दो आंखें हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। सदान समुदाय, समाज संपोषक है। विभिन्न समाजोपयोगी वस्तुओं का निर्माता भी यही है। सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी यही करता है। एक अन्न देता है दूसरा वस्त्र। एक जल देता है तो दूसरा पात्र (घड़ा आदि) एक हल देता है तो दूसरा फल। नृत्य गीत का सबसे बड़ा सहयोगी है। वादन यंत्र। इन वाद्य यंत्रों के निर्माता भी प्राय: ये सदान ही हैं। एक उदाहरण यथेष्ट होगा जैसे-

#मांदर झारखंड का सर्वाधिक लोकप्रिय मधुर वाद्य यंत्र। इसका प्रथम निर्माता खोल बनाने वाला कुम्हार होता है। दूसरा मोची जो, चमड़ा, छाने बांधने के लिए बना देता है। तीसरा है रंगरेज, जो उसे रंग-रोगन कर सुंदर रूप देता है। चौथा है घासी जो उसको छाने, लेप चढ़ाने या अंतिम रूप देने का काम करता है। तब जाकर मांदर अखरा की शान बनता है। इसके बोल रसिकों को अखरा का दीवाना बना देता है। जैसे वीन की आवाज से नाग खिंचे चले जाते हैं। नाच का सबसे बड़ा साथी मांदर ही होता है। आदिवासी और सदान गुईया सहिया बनकर रहते हैं। एक दूसरे के सुख-दुख में संभागी होते हैं। इनका यह सहियारी गुईयारी संबंध इनके नृत्य-संगीत के अखरा में भी दिखाई देता है। तभी तो मुंडा, खड़िया, उरांव इत्यादि आदिवासीयों के लोक गीतों में सदानी गीतों का भी भरमार है और सदियों से ये सादरी गीत न केवल अखरा-जतरा, पर्व-त्योहार बल्कि संस्कार जैसे विवाह शादी के अवसर में गीत भी सुने जा सकते हैं। सदानी के माठा, जदुरा आदि में आदिवासी छाप है तो आदिवासीयों के नाच, गीत व बाजा में सदानी की।

#सदान समाज के प्रमुख नृत्य:
सदान समाज के प्रमुख नृत्य हैं - १.फगुआ २.डमकईच ३.लहसुआ ४.ठढ़िया ५.डंइडधरा ६.लुझरी ७.उधउवा ८.रसकिर्रा ९.पहिल १०.सांझा ११.अधरतिया १२. भिनसरिया १३.उदासी १४.पावस १५.मरदानी झूमईर १६.झूमर १७.जनानी झूमईर  १८.बंगला झूमईर १९.अंगनइ २०.मंडा या भगतिया नृत्य २१.माठा २२.जदुरा २३.सोहराई २४.रास  २५.पइका नाच २६.नटुआ २७.कली घोड़ा नाच २८.छव नृत्य २९.मइटकोड़न ३०.पइनकाटन आदि।

#डमकच नृत्य:
सबसे लोकप्रिय कोमल नृत्य-गीत डमकच को माना जाता है। इसके नृत्य, गीत, रंग, सरस, मधुर, सरल एवं लचकदार होते हैं। वाद्य के ताल नृत्य में उत्तोजना उत्पन्न करते हैं। मूलत: यह स्त्री प्रधान नृत्य गीत हैं। परंतु पुरुष भी इसमें सम्मिलत हो जाते हैं। महिलाएं नृत्य के लिए कतार में हाथ से हाथ जोड़ कर कदमों की कलात्मक चाल से नृत्य करती है। लचकने, झुकने, सीधा होने की नृत्य मुद्र से गायनाहा तथा बजनिया में उत्साह बढ़ जाता है। इसमें महिला नर्तकों के दो दल होते हैं। एक दल गीत उठाता है तब बजाने वाले अपनी साज छोड़ देते हैं। उसके बाद दूसरा दल उन गीतों की लड़ियों को दुहराता है। किसी-किसी इलाके में मात्र महिलाएं डमकच नाचती हैं तो कहीं-पुरुष भी सम्मिलत होकर अर्थात महिलाओं से जुड़ कर नृत्य करते हैं।

डमकच प्राय: घर के आंगन में खेला जाता हैं। घर परिवार के लोग मिल कर नृत्य करते हैं। इसमें मांदर, ढोल, ढांक नगाड़ा, शहनाई, बांसुरी, ठेचका, करताल, झांझ आदि बजाए जाते हैं। कहीं-कहीं आंगन के पींडा या कोने से अर्थात् नृत्य मंडली से बाहर बाजे बजाए जाते हैं। राग, लय, ताल तथा कदमों की चाल इनमें बदल जाती है। बजनिया और गायनहा के दो दल हो जाते हैं। डमकच नृत्य गीत रस से सराबोर कर देने वाला नृत्य है।

डमकच नृत्य विवाह-शादी तय हो जाने के बाद तथा वर-कन्या के घर-आंगन में रात्रि में होता है। डमकच खेलने वालों के लिए डमकच हंड़िया सदानों के घरों में भी उठाया जाता है तथा खेलने वालों को एक-एक कटोरा डमकच हंड़िया थकान मिटाने के लिए पिलाया जाता है। यह नृत्य देव उठान से प्रारंभ होकर रथ यात्रा की समाप्ति तक चलता है। वेशभूषा सामान्य से कुछ विशेष होती है। जब हल्की रोशनी या चांदनी रात में नृत्य गीत चलता है तो पूरे गांव में मधु घुल जाता है। डमकच के कई भेद हो जाते हैं। जैसे- जशपूरिया, असममिया, झुमटा आदि।

#जनानी झूमईर नृत्य
यह महिला प्रधान नृत्य है महिलाएं दलों में एक दूसरे के हाथों में हाथ उलझा कर कदम से कदम मिलाकर कलात्मक पद संचालन करते हुए लास्य-लोच से युक्त कभी झुकती कभी नृत्य की गति को तीव्र करती हैं। गायनाहा (गाने वाले) बजनिया (बजाने वाले) नाचने वालियों के मधय में होते हैं। इन्हें घेर का वृत्ताकार एक से अधिक दल झोंकता (दुहराता) है। तभी नृत्य आरंभ हो जाता है। गति उठाने के समय वाद्य तनिक क्षण के लिए शांत हो जाते हैं। महिलाएं सामान्य श्रृंगार किए रहती हैं। लेकिन कली की तरह नहीं। आगे की महिला करताल लिए रहती हैं। यही नृत्य का नेतृत्व करती है। रागों के बदलने के साथ इनके नृत्य की मुद्राएं कदम बदल जाते हैं। जिनका शेष महिलाएं अनुकरण करती हैं। जनानी झूमर के भी वादक पुरुष ही होते हैं। इस नृत्य में भी कई भेद-उपभेद हैं। इस श्रेणी के नृत्य में अंगनइ प्रमुख है।

#कली नृत्य:
इसे नचनी, खेलड़ी नाच भी कहते हैं। इसमें नर्तकी भरपूर श्रृंगार किए रहती है। बालों की केश सज्जा निराली होती है। उस पर मुकुट पहनी रहती है। चेहरे को सौंदर्य प्रसाधनों से लैस कर दी रहती है। बालों में चांदी के आभूषण तथा गजरे, कानों में बालियां या झुमके झूलते रहते हैं। हाथों में रंग-बिरंगी लहंठी, चूड़ी, कंगन, बाला, गले में चंद्रहार और फूलों की माला। छींटदार चमकीली चोली, साड़ी झिलमिलाती हुई होती है। पैरों में आलता तथा घुंघरू बंधे हुए रहते हैं। हाथों में आकर्षक रूमाल हवा में राग, लय ताल, नृत्य के अनुरूप लहराने के लिए पकड़ी रहती है। मुख में पान और सदा विराजमान मुस्कान जान डाल देते हैं। रासलीला की राधिका की भांति नृत्य के केंद्र में सुशोभित रहती है। संख्या एक या अधिक भी रहती है। अखरा के मध्य में काली नृत्य करती है। इसे चारों ओर से झुमराहा, गायनाहा, बजनिया रसिक घेरे रहते हैं। इसमें सामान्य महिला नहीं भाग लेती है।

कभी नृत्य में नगाड़े, ढांक, ढोल, मांदर, शहनाई आदि बजते हैं। प्राय: श्रृंगार और भक्तिपरक गीतों में राधा-कृष्ण प्रसंग के गीतों की प्रधानता रहती है। यह नृत्य भी सदान राजे-महाराजे, पुराने सदान जमींदार तथा सदान झुमराहा रसिकों के अखरा, आंगन या बारादरी में होता है। यह नृत्य अन्य क्षेत्र के प्रचलित बाई नृत्य या मुजरा आदि की तरह अशिष्ट नहीं होता। कली नृत्य ऐसे ही नृत्य का शिष्ट झारखंडी (नर्तकी) ही रहती हैं। कली फूल के खिलने की सुंदरता को प्रतिबिम्बित करती है। इसी से इस सौंदर्य भरे नृत्य को कली नाच कहा जाता है। परंतु नर्तक कली का स्पर्श नहीं करते।

कली नाच में कोई भी दर्शक सम्मिलत हो सकता है। जबकि दाई के मुजरे में ऐसा नहीं होता। दर्शक मात्र इसमें देख कर आनंद ले सकते हैं। कली नृत्य की तरह सम्मिलत होकर नहीं। कली नाच में दर्शक, वादक, गायक, नर्तक को अलग कर देखा ही नहीं जा सकता। सभी इस नृत्य के सहभागी रहते हैं जो इन्हें अशिष्ट नहीं देते। कली स्वतंत्र रूप में पुरुष समूह में नृत्य करती है परंतु पुरुष स्पर्श नहीं होता न ही उनसे जुड़कर या हाथ पकड़ कर नाचती है। कली नृत्य का समावेश स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त फगुआ, मरदानी, झूमईर, रास, पइका, घोड़ा नाच, नटुआ नाच में भी होता है।
स्रोत:- कला संस्कृति विभाग (झारखंड सरकार)
नोट:- सदानी समाज, सदानी भाषा संस्कृति, सदानी लोक कला नृत्य, सदानी गीत संगीत को ही सादरी या नागपुरी के नाम से भी जाना जाता है।
हमारी एक छोटी सी कोशिश है की हमारे सदान समाज के बिखरे हुए सदान जाती गोष्ठीयों को एकजुट करना और सदान समाज को मजबुत करना तथा धुमिल होते सदानी अस्तित्व को बचाना, सदान हित आधिकार भाषा लोक कला संस्कृति इत्यादि के कार्य करना।
लेकिन इसके लिए हमारे सदान समाज के बुद्धिजीवी, शिक्षित, सक्षम, जानकार वर्गों को इसके लिए आगे आना होगा तभी ये सम्भव हो पायेगा।
हमारे सदान बहुत भोले होते हैं और इसी का फायदा दुसरे समाज वाले हों या अपने ही बीच के चंद लोभी गद्दार हों जो जानते हुए भी खुद को सदान नहीं बल्कि आदिवासी कहलाने पर ज्यादा जोर देते हैं और चंद लोभ में अपने सदान जाती गोष्ठीयों को भटका कर पुरे सदान समाज को दिशाहीन बना दिये पुरे सदान समाज को कमजोर बनाकर रख दिये हैं सदान अस्तित्व को धुमिल कर दिये।

झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओड़िसा, असम, बंगाल, अंडमान आदि जैसे राज्यों में तथा नेपाल, बंगलादेश इत्यादि जैसे देशों में सदान रहते हैं तथा हमारे सदान समाज से हांथ जोड़ विनती है की आप लोग अपने अस्तित्व धरोहर भाषा लोकला लोकगीत संस्कृति इत्यादि को जानें पहचानें यही हमारी कोशिश है और आप अपने सदान अस्तित्व धरोहर भाषा संस्कृति की रक्षा करें।
हम नहीं जानते हैं की हम अपने सदान समाज के अस्तित्व धरोहर भाषा संस्कृति गीत राग लय ताल, सदान आधिकार और समाजिक एकता आदि को कितना दुर तक बचा पायेंगे, लेकिन कोशिश कर रहे हैं यही हमें सन्तुष्टी है।
                    #जय_हिंद_जय_भूमिपुत्र_सदान
                        #सदान_एकता_जिन्दाबाद

Sunday, 26 January 2020

पद्मश्री मधु मंसूरी हंसमुख जी

#पद्मश्री_मधु_मंसूरी_की_कहानी ।
सबसे पहले पुरे सदान समाज की ओर से अपने सदान समाज एवं पुरे झारखंड का नाम गौरन्वित करने वाले सदान मधु मंसुरी हंसमुख जी को हार्दिक बधाई और ढेर सारा शुभकामनाएं।
गांव छोड़ब नहीं जंगल छोड़ब नहीं,,, नागपुर कर कोरा नदी नाला टका टूकू वन रे पतारा...जैसे चर्चित सदानी (नागपुरी) गीत के रचयिता और नाम के अनुरूप अपनी खराश भरी आवाज में उसे गुंजायमान करने वाले गीतकार लोकगायक समाज सेवक मधु मंसूरी अब पद्मश्री हो चुके हैं।
उनके गीत को जंगल, पहाड़, शहर-डगर और गांव-खलियान में प्रतिनिधि लोकगीत के दर्जा हासिल कर चुके हैं। 7 साल की उम्र में पहली बार गीत गाने वाले झारखंड के लोक गीतकार-लोकगायक को 73 साल में पद्मश्री । मधु मंसूरी जी बताते हैं की 2 अगस्त 1956 की तारीख रातू ब्लॉक के शिलान्यास का मौका था। मुख्य अतिथि रातू महाराजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव थे। उन्होंने घासीराम के गीत दूर देसे...को मधुर-मुखर स्वर में सुनाया था। तालियां तो बजनी ही थीं।

गांव छोड़ब नहीं जंगल छोड़ब नहीं...इस गीत के रचयिता और गायक एक सदान हैं जो अपनी मातृभाषा सदानी (सादरी/नागपुरी) में लिखा है और गाया है। ये गीत किसी एक समुदाय विशेष के लिए नहीं है यानी ये न केवल सदान समुदाय के लिए है और न ही आदिवासी समुदाय और न ही किसी दुसरे समुदायों के लिए है बल्कि ये गीत पुरे झारखंडवासीयों के दर्द को सामने रखकर एक सदान ने अपने गीतों में बयान किया, लेकिन इस गीत को तथाकथित कुछ लोग कुछ गलत शक्तियां जो हमेशा दलित आदिवासी दलित आदिवासी करके अपना राजनीति धंधा चलाते हैं वो सोशल मिडिया में इस गीत को Adivasi National Anthem Song बोलकर बोलकर गुमराह कर रहे हैं गलत और झूठ फैला रहे हैं ...😀😀😀 इतना ज्यादा भी सम्प्रदायिक नहीं होना चाहिए, जो हम सदानों के भाषा गीत संगीत को  आदिवासी का... इतना की सदानों को भी आदिवासी बता बताकर झूठ फैलाओ गुमराह करो।
सदानों के अस्तित्व मातृभाषा गीत संगीत संस्कृति के साथ राजनीति खेल असम और बंगाल में आदिवासी संगठनों के तथाकथित नेताओं के द्वारा शुरू हुआ और यहीं से एक बड़े झूठ का गलत प्रचार प्रसार किया गया और किया जाता रहा है और सदान अस्तित्व वजूद को मिटाने की राजनीति षड़यंत्र चलता रहा है।
न जाने ऐसे कई झूठ फैलाये हैं और फैला रहे हैं और सदान के अस्तित्व को जानबूझकर मिटाने की एक बहुत बड़ी राजनीति साजिश किये जा रहे हैं, क्योंकि झूठ फैलाने वाले लोग जानते हैं जनता Real Fact को कभी जानने का कोशिश करता नहीं हैं, इसलिए आसानी से तथाकथित लोग उनके मनमुताबिक जैसे फायदा वैसे झूठ फैलाकर गुमराह करते हैं।
#झारखंड के सदान समाज के समाजिक संगठन सदान मोर्चा के सदस्य भी हैं मधु मंसुरी हंसमुख जी और अपने सदान समाज के सेवा में तथा झारखंडवासियों के सेवा में भी अपना पुर्ण योगदान दे रहे हैं।
हमारे सदान सच में बहुत भोले हैं, बिल्कुल जागरूक नहीं हैं इसी का फायदा कुछ गलत शक्तियां हैं और उन गलत शक्तियों का साथ दे रहे हैं हमारे अपने सदान समाज के ही चंद लोभी गद्दार लोग जो हम सदानों को दबाने कुचलने मिटाने में हमेशा लगे रहते हैं और लगे हुए हैं। हमारे सदानी लोग कभी भी अपने Sadan Identity... अपने हक आधिकार... अपने धरोहर को लेकर सचेत नहीं रहा... और यही कारण है की Sadan Community आज एक गुमनामी में है और हम सदानों के धरोहर हमारी मातृभाषा सदानी यानी सादरी (नागपुरी)  गीत संगीत संस्कृति को कुछ तथाकथित आदिवासी नेता आदिवासी संगठन वाले आदिवासी का बताकर हम सदानों के पहचान को दबाने कुचलने में लगे हुए हैं।

बिगड़ा अभी भी कुछ नहीं है... कहते हैं न जब जागो तब ही सबेरा है,,, और हमारे सोये हुवे सदानों को अब जागने की जरूरत है और अपने धुमिल होते identity को बचाना है और दुनिया को बताना है... बिखरे हुवे सदान जाती गोष्ठीयों को एकजुट होना है और अपने सदान समाज को एक मजबुत समाज बनाकर अपने धुमिल होते अस्तित्व को बचाने अपने हक आधिकार के लिए आवाज बुलंद करना है...हम सदान हैं सदानी (सादरी/नागपुरी) भाषा संस्कृति गीत संगीत हमारी पहचान है।
                  #जय_हिंद_जय_भूमिपुत्र_सदान
                      #सदान_एकता_जिन्दाबाद

Wednesday, 1 January 2020

सदान- एक परिचय


सदान और आदिवासी (कोल) मनकर बीच सन् 1831 कर कोल विद्रोह होवेक कर मुख्य कारण-

                     छोटानागपुर कर सदान समुदाय

छोटानागपुर और आस पास कर क्षेत्र, जेके ऐतिहासिक रूप से झारखंड कर नांव से जनाल जायला, ब्रैडली बर्ट कर आनुसार 'सम्राज्य कर एक छोट ज्ञात प्रांत हय छोटानागपुर'। इ क्षेत्र कर मूलवासी भूमिपुत्र जे आदिवासी (St/जनजाती) न लगाएं और जे कम ज्ञात और स्वीकृत अहयं उ जाईत गोष्ठी ही "सदान" कहलाएना। सदान धार्मिक आधार से प्रचीनतम हिंदु समुदाय हेकयं। सदान मन समुदायिक रूप से रहत रहयं आउर आदिवासी मन कबीलाई रूप से रहत रहयं।

झारखंड में अनुसूचित जनजाती यानी आदिवासी कर बाद विभिन्न जाती कर जे एक समुदाय हय, जे आदिवासी मनकर संग ही गांव मन में हमेशा से मिल जुइल के रहते आवत आहयं उहे समुदाय कर लोग मनक समुदाय ही  "सदान" हेके। सदान इ क्षेत्र कर पुरना मूलवासी हेकयं। सदान समुदाय ठीन एक समृद्ध परंपरा, संस्कृति और इतिहास है। जे भाषा सदान मनक हेके उके सदानी भाषा भी बोलल जाएला। सदानी कर दोसर नांव है सदरी, सादरी, नागपुरी। पंचपरगनिया, खोरठा, कुर्माली मातृभाषी मन भी सदान हेकयं। सदान मनक संस्कृति और रंगरूप प्रोटो-ऑस्ट्रोलाइड, द्रविड़ और आर्य परंपरा कर एक अद्भुद मिश्रण अहे।

ब्रिटिस काल में आदिवासी और सदान दुइयो समाज के आपन आजादी से हाथ धोवेक पइड़ रहे। उहे ले दुइयो समाज आपन सउब शक्ति कर जोरदार परजोग कइर अंग्रेजी शासन कर भयंकर रूप से विरोध करलैं। मुदा दुश्मन शक्ति कर आगे उनकर सैनिक बल कर आगे आदिवासी और सदान दुइयो कमजोर रहलैं। फिर भी दुइयो समाज आपन आजादी और स्वाभिमान के बनाए रखेक कर कोशिश करत रहैं। सदान और आदिवासी कर एकता के तोड़ेक ले अंग्रेज मन 'फूट डालू राज करू' कर नीति अपना लैं। इकर से 'दिकु' शब्द कर प्रकृति और सरल आवधारना बदइल गेलक। झारखंड कर आदिवासी मन ले दिकु बाहरे से आवल मुगल, पंजाबी, अंग्रेज इत्यादि मन रहैं। लेकिन अंग्रेज मन फूट डाइल के राज करे कर नीति अनुसार 'दिकु' शब्द के धीरे धीरे सदान मन बट मोइड़ देलैं आउर तभी सदान मनक मातृभाषा के आदिवासी मन दिकुकाजी नाम देई रहयं। दिकु कर इ नवा आवधारना झारखंड में विनाश करलक 1831-1833 कर प्रसिद्ध कोल विद्रोह कर रूप में, इ विद्रोह में आदिवासी मन और सदान मन एक दोसर कर उपरे क्रूरता से हमला करलैं।
आदिवासी और सदान में फूट डालेक कर नीति अंग्रेज मनकर सुपट काम करलक और आदिवासी मन कोल विद्रोह करलैं सदान मनकर विरूद्ध में।

हाल कर शोध से इ साबित होवेला कि ऐतिहासिक रूप से सदान विभिन्न कबीला मनक और नाग-जाती व्यापक समूह कर स्थानीय प्रतिनिध हेकैं। किन्नर, गंधर्व, यक्ष, कोल और किरात कर तइर ही नाग-जाती भी प्रचीन भारत कर एक प्रजाती हेके। दुर्भाग्य से उनकर इतिहास जे भारत कर इतिहास कर एक प्रमुख और बहुमूल्य आध्यय हेके, उ हेराए गेलक। इ क्षेत्र में पर्याप्त पुरातत्विक सबूत अहे, जे साबित करेल कि नाग-जाती (सदान) समूह लोग शिव, विष्णु, दुर्गा, राम, कृष्णा, सुर्य, बुरू बोंगा (पहाड़ आत्मा), ग्राम देवता और विभिन्न देवी देवता मनक पुजा पाठ करत रहैं। सदान समुदाय कर लोग मन आदिवासी मन से मिलके करम, सरहुल, जितिया, सोहराई और मंडा पर्व मनाएना। सदान मनक संस्कृति प्रोटो-ऑस्ट्रोलाइड, द्रविड़ और आर्य कर एक समिश्रण रूप अहे।

सदान मनक जीवन जीयेक कर आपन तरीका अहे, जे इ क्षेत्र कर आदिवासी और मैदानी इलाका कर आर्य मन से थोड़ेक अलग है।सदान समुदाय कर लोग मन में आदिवासी और आर्य दुइयो संस्कृति कर तत्व शामिल अहे। एइसन ओहेले अहे कि सदान इ बेल्ट कर एक अलग समाजिक-आर्थशास्त्रीय प्रणाली से बंधल रहैं। सदान समाज बहुत कुछ आदिवासी समाज से सिखलैं और आदिवासी समाज भी सदान समाज से बहुत कुछ सिखलैं।

#नोट:- सदान समुदाय (नागवंशी, रौतिया, राजपुत, झोरा, तेली, अहीर, गोसाई, घांसी, कुम्हार, भुंईया, रविदास इत्यादि एइसन कुल 18 से 20 सदान जाती गोष्ठी आहयं ), सदान जेके नागपुरी समुदाय से भी जनाल जाएला,  सदान समुदाय एक हिंदु समुदाय हय आउर हिंदु समुदाय में जाती वर्ण व्यवस्था होवेक कर कारण सदान समुदाय में दलित से लेई के क्षत्रिय, ब्रह्मण ( संवैधानिक वर्गीकरन कर रूप से sc, Obc, Gen Category में अहयं) तक अहैं आउर आदिवासी यानी जनजाती मनक आपन अलग वर्ग आहे जेके अनुसूचित जनजाती या आदिवासी वर्ग (St/ Schedule of Tribal Caste) कहैना । सदान मन में ऑस्ट्रो-प्रोटोलाइड, द्रविड़ और आर्य कर मिश्रण होवेक कर कारण रंग रूप सदान और झारखंड मूल कर आदिवासी दुइयो समूह कर लोग मनक एक तइर ही अहे।
झारखंड छत्तीसगढ़ और उड़ीसा कर अलावा असम, बंगाल कर तराई-डुवार्स, नेपाल, बंगलादेश आदि पूर्वोत्तर क्षेत्र में ब्रिटिस काल में सदान मन गेलैं और अब इ क्षेत्र मन कर मूलनिवासी हेकैं। और एहे उ कारण है कि सदान मनक मातृभाषा सदानी यानी सादरी (नागपुरी) कर उपस्थिति इ सउब क्षेत्र में अहे। जिस क्षेत्र जगह लइल हमार सदान मनक उपस्थिति नखे यानी सदान समुदाय कर नखयं उ लइल कर आदिवासी जाइत समुदाय वाला मन सदान मनक सादरी के न समझेन आउर न ही बोलेक पारेन। झारखंड मूल कर आदिवासी मन सालो से सदान मनकर साथ रहते आओ थयं से ले सदान बोली भाषा सिख गेलयं सदान मनक बोली भाषा बोलैना, असम अउर बंगाल कर तराई-डुवार्स सदान बहुल इलाका हेके से ले इ सब क्षेत्र इलाका लइल सदान बोली भाषा गूंजा थे।

लेकिन कुछ सालो से देखल जा थे कि असम बंगाल में आदिवासी संगठन कर कुछ तथाकथित नेता मन आपन राजनीति फायदा ले भाषायी राजनीति खेल खेले लइग हयं आउर सदान मनक अस्तित्व मिटाए के सदान मनके गुमराह कइर के आदिवासी संगठन ले भीड़ दलबल हमेशा जुटाए रहेक चाहेन, अगर सदान मन आपन अस्तित्व जइन जबयं तो आपन भाषा संस्कृति कर साथ छेड़छाड़ सदान मनक अस्तित्व कर साथ छेड़छाड़ कर विरोध जरूर करबयं तब सदान मन आपन संठन बनाए के आपन अस्तित्व आपन भाषा संस्कृति कर संरक्षण ले लड़बयं न कि सदान मन आदिवासी कर अस्तित्व ले। आउर एहे उ कारण हय कि आदिवासी संगठन वाला मन सदान मनके बेवाकुफ बनाए के सदान मनक मातृभाषा सदानी यानी सादरी (नागपुरी) के आदिवासी मनकर भाषा बताए के झूठा प्रचार करैना, आदिवासी संगठन वाला मनकर मकसद हमार सदान मनक अस्तित्व के हमेशा ले मिटाए देक ताकि सदान मनके आदिवासी बताए के आदिवासी संगठन कर नेता मन खूब लाभ लेते रहबयं आउर सदान मन खुद के आदिवासी बताए के सिर्फ आदिवासी मनक संख्या में बढ़ोतरी होवी जेकर फायदा सिर्फ आदिवासी मन ले मिली सदान मनले नहीं। का ले कि सदान.. सदान हेकयं,,, आदिवासी (जनजाती) नहीं। भाषा संस्कृति ही पहचान होवेला कोनो भी जाईत समुदाय कर ... जइसन- बंगला से बंगाली समाज, नेपाली से नेपाली समाज, असमीया भाषा से असमीया समाज इत्यादि... से लखे सदानी (सादरी ) से सदान होवेल, लेकिन आदिवासी संगठन कर कुछ तथाकथित आदिवासी नेता मन आपन राजनीति फायदा ले सदान मनकर मातृभाषा के आदिवासी मनकर भाषा बताए के झूठा प्रचार करैना,,, ताकि इकर से सदान मन आपन असल पहचान अस्तित्व के न जानोक आउर खुद के आदिवासी समइझ आदिवासी संगठन के सपोर्ट करोक,,, सदान मनके गुमराह करेक कर चक्कर में आदिवासी नेता मन इ भुलाए गेलयं कि उ मनक आपन आदिवासी मन भी बहुत ज्यादा गुमराह होई गेलयं आउर आपन आपन मातृभाषा के भुलाए जा थयं आदिवासी मनकर भाषा बहुत तेजी से लुप्त होई जाथे।

आदिवासी मनक भाषा संस्कृति विशेष ही एक आदिवासी (जनजाती) जाईत कर आदिवासीयत के बताएल आउर तभी उ जाइत के आदिवासी जाईत मइन के आदिवासी वर्ग में रखल जाएल,,, आदिवासी यानी जनजाती मनक एक केंद्रीय कमिटि हय लोकूर कमिटि आउर लोकुर कमिटि कर मापदंड कर हिसाब से जितना भी आदिवासी (st groups) ग्रुप आहे तराई डुवार्स में उ मनकर आदिवासियत रद् कइर देल जाई,, का ले कि तराई डुवार्स में रहे वाला 95% आदिवासी (st/ जनजाती) मन आपन आपन मातृभाषा भुइल जाहयं आउर सदान मनक सादरी के ही बोलैना,,, सादरी सदान मनक मातृभाषा हेके सदान हिंदु समुदाय हेके आउर सादरी (नागपुरी) आर्य परिवार कर भाषा हेके।
आदिवासी संगठन कर नेता मन आपन आईज कर फायदा ले सदान मनक मातृभाषा कर साथ राजनीति कइर के सदान मनके गुमराह कइर के उ मन खुद आपन आदिवासी मनके गुमराह करा थयं,,, एइसन न हो कइल लोकुर कमिटि कर क्षानबीन शुरू होई जाई आउर बहुत आदिवासी जाईत मनके आपन आदिवासीयत से हटाए देल जाई आउर इकर एक मात्र कारण भाषा होवी। सेले आदिवासी भाई मन से भी निवेदान हय कि हमार सदान मनक मातृभाषा के बोइल देने से उ आदिवासी मनकर नी होई जाई,,, सदान मन जिंदा आहयं। राउरे मन आपन आपन आदिवासी भाषा के बचाऊ तभी राउरे मन आपन आदिवासीयत के बचाएक परब।

(सदान समुदाय कर शोधकार्ता डॉ. बी.पी केशरी जी कर अंग्रेजी किताब "कल्चरल झारखंड" से संपादित प्रस्तुति)।

नागपुरी (सदानी/सादरी) अनुवाद सदान पीपल्स टीवी बट ले।